सिमती हुई ये घड़ियां - The Indic Lyrics Database

सिमती हुई ये घड़ियां

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर | संगीत - खैय्याम | फ़िल्म - चंबल की कसम | वर्ष - 1979

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ल : सिमटी हुई ये घड़ियाँ
फिर से न बिखर जायेँ -२
र : इस रात में जी लें हम
इस रात में मर जायेँ
दो : इस रात में मर जायेँ
सिमटी हुई ये घड़ियाँर : अब सुबहा न आ पाये
ल : आओ ये दुआ माँगें
अब सुबहा न आ पाये
र : आओ ये दुआ माँगें
ल : इस रात के हर पल से
रातें ही उभर जायेँ
दो : रातें ही उभर जायेँ
सिमटी हुई ये घड़ियाँल : दुनिया की निगाहें अब
हम तक न पहुँच पायेँ
र : दुनिया की निगाहें अब
हम तक न पहुँच पायेँ
ल : तारों में बसें चलकर
र : धरती पे उतर जायेँ
दो : धरती पे उतर जायेँ
सिमटी हुई ये घड़ियाँल : ( हालात के तीरों से
छलनी हैं बदन अपने ) -२
र : पास आओ के सीनों के
कुछ ज़ख़्म तो भर जायेँ -२
दो : सिमटी हुई ये घड़ियाँर : आगे भी अन्धेरा है
ल : पीछे भी अन्धेरा है
आगे भी अन्धेरा है
र : पीछे भी अन्धेरा है
दो : अपनी हैं वोही साँसें
जो साथ गुज़र जायेँ -२
सिमटी हुई ये घड़ियाँल : आ


हूँ हूँ हूँ
ये घड़ियाँ
फिर से
हूँ हूँ हूँ
सिमटी हुई
हूँ हूँ हूँ( बिछड़ी हुई रूहों का
ये मेल सुहाना है ) -२
र : इस मेल का कुछ अहसाँ
जिसमों पे भी कर जायेँ
दो : जिसमों पे भी कर जायेँ
सिमटी हुई ये घड़ियाँल : तरसे हुये जज़बों को
अब और न तरसाओ
र : तरसे हुये जज़बों को
दो : अब और न तरसाओ
र : तुम शाने पे सर रख दो
ल : हम बाँहों में भर जायेँ -२
दो : सिमटी हुई ये घड़ियाँ