गंगा तेरा पानी अमृत झर झर बहता जाए - The Indic Lyrics Database

गंगा तेरा पानी अमृत झर झर बहता जाए

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - रवि | फ़िल्म - गंगा तेरा पानी अमृत | वर्ष - 1971

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गंगा तेरा पानी अमृत झर झर बहता जाए
युग युग से इस देश की धरती तुझसे जीवन पाए
दूर हिमालय से तू आई गीत सुहाने गाती
बस्ती बस्ती जंगल जंगल सुख संदेश सुनाती
तेरी चाँदी जैसी धारा मीलों तक लहराए
कितने सूरज उभरे डूबे गंगा तेरे द्वारे
युगों युगों की कथा सुनाएँ तेरे बहते धारे
तुझको छोड़ के भारत का इतिहास लिखा ना जाए
इस धरती का दुःख सुख तूने अपने बीच समोया
जब जब देश ग़ुलाम हुआ है तेरा पानी रोया
जब जब हम आज़ाद हुए हैं तेरे तट मुस्काए
खेतों खेतों तुझसे जागी धरती पर हरियाली
फसलें तेरा राग अलापें, झूमे बाली बाली
तेरा पानी पीकर मिट्टी सोने में ढल जाए
तेरे दान की दौलत ऊँचे खलिहानों में ढलती
खुशियों के मेले लगते, मेहनत की डाली फलती
लहक लहक के धूम मचाते तेरी गोद के जाए
गूँज रही है तेरे तट पर नवजीवन की सरगम
तू नदियों का संगम करती, हम खेतों का संगम
यही वो संगम है जो दिल का दिल से मेल कराए
हर हर गंगे कहके दुनिया तेरे आगे झुकती
तुझी से हम सब जीवन पाएँ तुझी से पाएँ मुक्ति
तेरी शरण मिले तो मैया जनम सफल हो जाए