हमन तो शाम ए गम मन कातानी है जिंदगी अपनि - The Indic Lyrics Database

हमन तो शाम ए गम मन कातानी है जिंदगी अपनि

गीतकार - एम जी अदीब या असगर सरहदी | गायक - नूरजहां | संगीत - फ़िरोज़ निज़ामी | फ़िल्म - जुगनू | वर्ष - 1947

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हमें तो शाम-ए-ग़म में काटनी है ज़िंदगी अपनी -२
जहाँ वो है वहीं ऐ चाँद ले जा चाँदनी अपनी -२अगर कुछ थी तो बस ये थी तमन्ना आख़िरी अपनी-२
कि तुम साहिल पे होते, और कश्ती डूबती अपनी-२तक़ाज़ा है यही दिल का, वहीं चलिये, वहीं चलिये-२
वो महफ़िल, हाए जिस महफ़िल में दुनिया लुट गई अपनी-२
हमें तो शाम-ए-ग़म में काटनी है ज़िन्दगी अपनीख़ुदा के पास से ज़ालिम, घड़ी भर के लिये आ जा
घड़ी भर के लिये आजा
बुझा है तेरे दामन पे शमा-ए-ज़िंदगी अपनी-२
हमें तो शाम-ए-ग़म में काटनी है ज़िंदगी अपनी
हमें तो ...