मुहब्बत के गुलाहा ए तर गुंधता हुं - The Indic Lyrics Database

मुहब्बत के गुलाहा ए तर गुंधता हुं

गीतकार - जमील मजहारी | गायक - के एल सहगल | संगीत - गणपत राव | फ़िल्म - कुरुक्षेत्र | वर्ष - 1945

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मुहब्बत के गुलहा-ए-तर गूँधता हूँतेरा हार रश्क-ए-क़मर गूँधता हूँये नाचीज़ कलियाँ नहीं तेरे लायक़
मैं दिल गूँधता हूँ, जिगर गूँधता हूँहैं आँसू की धारों में टुकड़े जिगर के
मैं ये हार शाम-ओ-सहर गूँधता हूँमुहब्बत की आँखों में है मुस्कुराहट
तबस्सुम बतौर-ए-नज़र गूँधता हूँ