गैरों पे करम, अपनों पे सितम - The Indic Lyrics Database

गैरों पे करम, अपनों पे सितम

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - रवि | फ़िल्म - आँखे | वर्ष - 1968

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गैरों पे करम, अपनों पे सितम
ऐ जान-ए-वफ़ा, ये ज़ुल्म न कर
रहने दे अभी, थोड़ा सा भरम
ऐ जान-ए-वफ़ा, ये ज़ुल्म न कर
हम चाहनेवाले हैं तेरे, यूँ हम को जलाना ठीक नहीं
महफ़िल में तमाशा बन जाएँ, इस दर्जा सताना ठीक नहीं
मर जाएँगे हम मिट जाएँगे हम, ऐ जान-ए-वफ़ा, ये ज़ुल्म न कर
गैरों के थिरकते शाने पर, ये हाथ गवारा कैसे करें?
हर बात गवारा है लेकिन ये बात गवारा कैसे करें?
तुझको तेरी बेदर्दी की कसम, ऐ जान-ए-वफ़ा, ये ज़ुल्म न कर
हम भी थे तेरे मंजूर-ए-नज़र, जी चाहे तो अब इकरार न कर
सौ तीर चला सीने पे मगर, बेगानों से मिलकर वार न कर
बेमौत कहीं मर जाएँ न हम, ऐ जान-ए-वफ़ा, ये ज़ुल्म न कर