जाने क्या ढूँढती रहती है ये आँखे मुझमें - The Indic Lyrics Database

जाने क्या ढूँढती रहती है ये आँखे मुझमें

गीतकार - कैफ़ी आज़मी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - खय्याम | फ़िल्म - शोला और शबनम | वर्ष - 1961

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जाने क्या ढूँढती रहती है ये आँखे मुझमें
राख के ढ़ेर में शोला है ना चिंगारी है
अब ना वो प्यार उस प्यार की यादें बाकी
आग वो दिल में लगी कुछ ना रहा, कुछ ना बचा
जिसकी तस्वीर निगाहों में लिये बैठी हो
मैं वो दिलदार नहीं उसकी हूँ खामोश चिता
ज़िन्दगी हँस के गुजरती थी बहोत अच्छा था
खैर हँस के ना सही रो के गुजर जायेगी
राख बरबाद मोहोब्बत की बचा रखी है
बार बार इसको जो छेड़ा तो बिखर जायेगी
आरजू जुर्म, वफ़ा जुर्म, तमन्ना है गुनाह
ये वो दुनिया है यहाँ प्यार नहीं हो सकता
कैसे बाजार का दस्तूर तुम्हे समझाऊँ
बिक गया जो वो खरीदार नहीं हो सकता