तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा - The Indic Lyrics Database

तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा

गीतकार - शकील बदायुँनी | गायक - लता - रफी | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - बैजू बावरा | वर्ष - 1952

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अकेली मत जईयो, राधे जमुना के तीर
तू गंगा की मौज, मैं जमुना का धारा
हो रहेगा मिलन ये हमारा तुम्हारा
अगर तू है सागर तो मझधार मैं हूँ
तेरे दिल की कश्ती का पतवार मैं हूँ
चलेगी अकेले ना तुम से ये नैया
मिलेगी ना मंज़िल तुम्हे बिन खेवैया
चले आओ जी, चले आओ जी
चले आओ मौजों का लेकर सहारा
भला कैसे टूटेंगे बंधन ये दिल के
बिछड़ती नहीं मौज से मौज मिल के
छूपोगे भंवर में तो छूपने ना देंगे
डूबो देंगे नैया, तुम्हे ढूँढ लेंगे
बनायेंगे हम, बनायेंगे हम
बनायेंगे तूफाँ को एक दिन किनारा