तूते हुए काबोन के लिये आंख ये तर क्यूं - The Indic Lyrics Database

तूते हुए काबोन के लिये आंख ये तर क्यूं

गीतकार - फरहत शहजादी | गायक - मेहदी हसन | संगीत - नियाज़ अहमद | फ़िल्म - कहना उसे (गैर-फिल्म) | वर्ष - 1984

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टूटे हुए ख़ाबों के लिये आँख ये तर क्यूँ
सोचो तो सही शाम है अंजाम-ए-सहर क्यूँजो ताज सजाए हुए फिरता हो अनोखा
हालात के क़दमों पे झुकेगा वही सर क्यूँसिलते हैं तो सिल जाएं किसे फ़िक़्र लबों की
ख़ुश-रंग अँधेरों को कहूँगा मैं सहर क्यूँसोचा किया मैं हिज्र की दहलीज पे बैठा
सदियों में उतर जाता है लम्हों का सफ़र क्यूँहरजाई है 'शहज़ाद' ये तस्लें य पजाना
सोचा भी कभी तुमने हुआ ऐसा मग क्यूँ