मैं जब भी अकेली होती हूँ - The Indic Lyrics Database

मैं जब भी अकेली होती हूँ

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - आशा भोसले | संगीत - एन. दत्ता | फ़िल्म - धर्मपुत्र | वर्ष - 1961

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मैं जब भी अकेली होती हूँ
तुम चुपके से आ जाते हो
और झाँक के मेरी आँखों में
बीते दिन याद दिलाते हो
मस्ताना हवा के झोंकों से हर बार वो पर्दे का हिलना
पर्दे को पकड़ने की धुन में दो अजनबी हाथों का मिलना
आँखों में धुआँ सा छा जाना, साँसों में सितारे से खिलना
मुड़-मुड़कर तुम्हारा रस्ते में तकना वो मुझे जाते जाते
और मेरा ठिठककर रुक जाना चिलमन के क़रीब आते आते
नज़रों का तरसकर रह जाना एक और झलक पाते-पाते
बालों को सुखाने की ख़ातिर कोठे पे वो मेरा आ जाना
और तुमको मुक़ाबिल पाते ही कुछ शर्माना, कुछ बल खाना
हमसायों के डर से कतराना, घरवालों के डर से घबराना
बरसात के भीगे मौसम में सर्दी की ठिठरती रातों में
पहरों वो यूँही बैठे रहना हाथों को पकडकर हाथों में
और लम्बी लम्बी घड़ियों का कट जाना बातों बातों में
रो रो के तुम्हे ख़त लिखती हूँ और खुद पढ़कर रो लेती हूँ
हालात के तपते तूफ़ां में जज़बात की कश्ती खेती हूँ
कैसे हो, कहाँ हो, कुछ तो कहो, मैं तुमको सदाएँ देती हूँ