आ मेरे राँझना, रुख़्सत का है समाँ - The Indic Lyrics Database

आ मेरे राँझना, रुख़्सत का है समाँ

गीतकार - मजरूह | गायक - लता | संगीत - अनिल बिस्वास | फ़िल्म - हीर | वर्ष - 1956

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आ मेरे राँझना, रुख़्सत का है समाँ
आँखों में दम है, लबों पे रुकी है जाँ)(2)

आने लगी मौत की सदा, अब मेरा कारवाँ चला(2)
आ भी जा तेरे क़दमों पे वार दूँ ये जान-ए-नातवाँ
आ मेरे राँझना, रुख़्सत का है समाँ
आँखों में दम है, लबों पे रुकी है जाँ

सुन मेरी आख़री फ़ुग़ाँ, रुकने लगी मेरी ज़ुबाँ(2)
ख़त्म होने को है अब जहान से उल्फ़त की दास्ताँ
आ मेरे राँझना, रुख़्सत का है समाँ
आँखों में दम है, लबों पे रुकी है जाँ
आ मेरे राँझना$