ओ आषाढ़ के पहले बादल - The Indic Lyrics Database

ओ आषाढ़ के पहले बादल

गीतकार - भरत व्यास | गायक - मन्ना डे, लता | संगीत - एस एन त्रिपाठी | फ़िल्म - कवि कालिदास | वर्ष - 1959

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ओ आषाढ़ के पहले बादल, ओ नभ के काजल
विरही जनों के करुण अश्रुजल, रुक जा रे एक पल
दूर-दूर मेरा देश
जहाँ बिखराए केश
विरहन का बनाए वेश
प्रिया मेरी विदेश
कैसे काटे कलेश
उसे देना मेरा ये संदेश, रे
ओ आषाढ़ के पहले बादल
जा रे जा ओ मेघ, ओ मेरे दुःख के साथी
चल ऐसे ज्यों गगन-मार्ग में चलता हाथी
मंद पवन और बाएँ चातक बोल रहा है
बाँध कतार बगुलियों का दल डोल रहा है
राजहंस भी उड़ते हैं पंखों को ताने
मित्र विदा के समय हो रहे शकुन सुहाने
ओ आषाढ़ के पहले बादल
जाते-जाते तुम्हें मार्ग में मिलेगा मालव देश
जहाँ मोहिनी मालिनिओं का मधुर मनोहर वेश
आ ऽऽ
मेघवा झर-झर लागे बरसन
जाए कहो तुम छाए कित सन
मेघवा झर-झर लागे बरसन
तुम तो रहे परदेसन बरसन
हम तुम्हरे दरसन को तरसन
प्रीत लगी तुम्हरी ओ रन-छन
मेघवा झर-झर लागे बरसन
आगे तुमको मित्र मिलेगी कुरुक्षेत्र की भूमि विशाल
महाभारत के महायुद्ध की जहाँ जली थी एक दिन ज्वाल
कोटि-कोटि जहाँ बरस पड़े थे रिपु दल पर अर्जुन के बाण
कमल दलों पर बरसे ज्यों तेरी बरखा के अगणित बाण
मत मार मत मार बैरी बरखा के बाण
ओऽ गोरे गाल हुए लाल पापी कहना मेरा मान
मत, हो मत, हो मत मार मत मार बैरी बरखा के बाण
सनन-सनन पवन चले झनन-झनन झाँझर बोले
सन-सननन, झन-झनझन झनन-झनन झाँझर बोले
ओऽ कजरा भीगे अँचरा भीगे, भीगे रे नन्ही-सी जान
मत, हो मत, हो मत मार मत मार बैरी बरखा के बाण
बसंत बीता बरखा आई अब तो बिदेसिया चेत
मेघवा अंग लगत है मेरे लिपट-लिपट रस लेत
हाय मैं क्या करूँ
मत मार मत मार बैरी बरखा के बाण
चल आगे हिमगिरि शिखरों पर जहाँ बांस के वृक्ष महान
जिनके तन को छूकर छेड़े पवन हठीला मीठी तान
तिरछी तान में तान मिलाकर गाती हैं किन्नरियाँ गान
उस संगीत के साथ गरज तू, जागे पशुपतिनाथ महान
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, नमः शिवाय
शंकर त्रिलोचन अर्धांग गौरी
शिर चंद्र धारि, शंकर त्रिलोचन
महादेव जय, महादेव जय, महादेव जय
गले मुंड की माल, कटि सोहे मृग चाल
हर-हर महादेव कल्याणकारी
शंकर त्रिलोचन अर्धांग गौरी
हर-हर महादेव, हर-हर महादेव, हर-हर महादेव
दूर देख अलकापुरी जहाँ मेरी प्रिय नार
छुपी हुई सहमी ठिठकी-सी लिए विरह का भार
आ तुझे मेरी दो अँखियाँ बार-बार पुकारती
विरह में रो-रो उतारे आँसुओं की आरती
तुम बसे परदेस प्रीतम प्राण भी संग ले गए
क्या हुआ अपराध जो बदले में ये दुःख दे गए
सुख ले गए
जग लगे अंगार-सा, सिंगार मैं न सँवारती
आ तुझे मेरी दो अँखियाँ बार-बार पुकारती
मिलन की एक आस पर ये दिन उगे और दिन ढले
जी रही हूँ इस तरह ज्यों तेल बिन बाती जले
कब तक जले
रात-दिन गिन-गिनके पल-पल पंथ-पंथ निहारती
आ तुझे मेरी दो अँखियाँ बार-बार पुकारती