नी बलिये रुत है बहार की - The Indic Lyrics Database

नी बलिये रुत है बहार की

गीतकार - शैलेंद्र | गायक - मुकेश, लता | संगीत - शंकर-जयकिशन | फ़िल्म - कन्हैया: | वर्ष - 1959

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नी बलिये रुत है बहार की
सुन चनवे रुत है बहार की
कुछ मत पूछो कैसे बीतीं घड़ियाँ इंतज़ार की
नी बलिये रुत है बहार की
सुन चनवे रुत है बहार की
आख़िर सुन ली मनमोहन ने मेरे मन की बोली ओ
अब जाकर हमको पहचानीं उनकी नज़रें भोली
सखी घड़ी आ गई मेरे सिंगार की
सोहल सिंगार की
नी बलिये रुत है बहार की
सुन चनवे रुत है बहार की
कुछ मत पूछो
दिल ने कहा तेरा सपना झूठा मैने कहा सच होगा
हम पहले दिन जान जान गए थे कैसे क्या कब होगा
सुन लो ये सरगम दिल के सितार की
दिल के सितार की
नी बलिये रुत है बहार की
सुन चनवे रुत है बहार की
कुछ मत पूछो
रात-रात भर सोचा तुमको कैसे पास बुलाऊँ
द्वार खड़े तुम लाज लगे अब सामने कैसे आऊँ
कभी इकरार की कभी इन्कार की
कभी इन्कार की
नी बलिये रुत है बहार की
सुन चनवे रुत है बहार की
कुछ मत पूछो