किधर मैं जौन कभी किसी कि कुशियां कोई लुते ना - The Indic Lyrics Database

किधर मैं जौन कभी किसी कि कुशियां कोई लुते ना

गीतकार - प्रदीप | गायक - मुकेश | संगीत - दत्ताराम | फ़िल्म - जिंदगी और ख्वाब | वर्ष - 1961

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किधर मैं जाऊँ समझ न पाऊँ बुला रही हैं दो राहें
इधर है ममता और उधर हैं भीगी निग़ाहेंकभी किसी की ख़ुशियाँ कोई लूटे ना
बनते-बनते महल किसी का टूटे ना
कभी किसी की ...भँवर से बच के एक भटकती नाव लगी थी किनारे
किसे ख़बर थी फिर पहुँचेगी इन आँसुओं के द्वारे
हाय इस तरह भाग किसी से रूठे ना
बनते-बनते महल ...अभी अभी दो फूलों वाली झूम रही थी डाली
घिरी अचानक काली बदली बिजली गिराने वाली
होते-होते साथ किसी का छूटे ना
बनते-बनते महल ...