एक था गुल और एक थी बुलबुल - The Indic Lyrics Database

एक था गुल और एक थी बुलबुल

गीतकार - आनंद बख्शी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - कल्याणजी आनंदजी | फ़िल्म - जब जब फूल खिले | वर्ष - 1965

View in Roman

एक था गुल और एक थी बुलबुल, दोनों चमन में रहते थे
है ये कहानी बिलकुल सच्ची, मेरे नाना कहते थे
बुलबुल कुछ ऐसे गाती थी जैसे तुम बातें करती हो
वो गुल ऐसे शरमाता था जैसे मैं घबरा जाता हूँ
बुलबुल को मालूम नहीं था गुल ऐसे क्यो शर्माता था
वो क्या जाने उसका नग्म़ा गुल के दिल को धडकाता था
दिल के भेद ना आते लब पे ये दिल में ही रहते थे
लेकिन आखिर दिल की बातें ऐसे कितने दिन छूपती हैं
ये वो कलियाँ हैं जो एक दिन बस काँटे बन के चुभती हैं
एक दिन जान लिया बुलबुल ने वो गुल उस का दीवाना है
तुम को पसंद आया हो तो बोलूँ फिर आगे जो अफसाना है
एक दूजे का हो जाने पर, वो दोनो मजबूर हुए
उन दोनो के प्यार के किस्से गुलशन में मशहूर हुए
साथ जिएंगे, साथ मरेंगे, वो दोनो ये कहते थे
फिर एक दिन की बात सुनाऊँ एक सय्याद चमन में आया
ले गया वो बुलबुल को पकड के और दीवाना गुल मुरझाया
शायर लोग बयां करते हैं ऐसे उन की जुदाई की बातें
गाते ते ये गीत वो दोनो, सैंया बिना नहीं कटती रातें
मस्त बहारों का मौसम था आँख से आंसू बहते थे
आती थी आवाज़ हमेशा ये झिलमील झिलमील तारोँ से
जिसका नाम मोहब्बत है वो कब रूकती है दिवारों से
एक दिन आह गुल-ओ-बुलबुल की उस पिंजड़े से जा टकराई
टूटा पिंजड़ा, छूटा कैदी, देता रहा सैय्याद दुहाई
रोक सके ना उस को मिलके, सारा जमाना, सारी खुदाई
गुल साजन को गीत सुनाने, बुलबुल बाग में वापस आई
याद सदा रखना ये कहानी, चाहे जीना, चाहे मरना
तुम भी किसी से प्यार करो तो, प्यार गुल-ओ-बुलबुल सा करना