मदहोश हवा मतावली फ़िज़ा - The Indic Lyrics Database

मदहोश हवा मतावली फ़िज़ा

गीतकार - फारूक कैसर | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - शंकर, जयकिशन | फ़िल्म - प्रिंस | वर्ष - 1969

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मदहोश हवा मतवाली फ़िज़ा संसार सुहाना लगता है
कर लें न किसी से प्यार कहीं दिल अपना दीवाना लगता है
मदहोश हवा ...राही हूँ नया अनजान डगर प्यारा है बड़ा जीवन का सफ़र -२
निकला हूँ मैं अपनी मस्ती में मालूम नहीं मंज़िल है किधर
ये बढ़ते हुए बेचैन क़दम पाएँगे ठिकाना लगता है
कर लें न किसी से ...होंठों पे हँसी आँखों में नमी किस बात की है दुनिया में कमी
जीना भी यहीं मरना भी यहीं तक़दीर सभी को एक मिली
मैं जिनकी कहानी दिल से सुनूँ अपना ही फ़साना लगता है
कर लें न किसी से ...कर लें न किसी से प्यार कहीं दिल अपना दीवाना लगता है
मदहोश हवा मतवाली फ़िज़ा संसार सुहाना लगता है
मदहोश हवा ...पल भर को न हम आराम करें दो हाथ हज़ारों काम करें -२
क़िस्मत की शिकायत क्या करना भगवान को क्यों बदनाम करें
इक रोज़ हमारे हाथों से बदलेगा ज़माना लगता है
कर लें न किसी से ...जो आग तुम्हारे दिल में लगे उस आग में मेरा दिल भी जले
धनवान हो या निर्धन हो कोई दाता की नज़र में एक हुए
इन्साँ से रिश्ता इन्सां का इस जगह पुराना लगता है
कर लें न किसी से ...कर लें न किसी से प्यार कहीं दिल अपना दीवाना लगता है
मदहोश हवा मतवाली फ़िज़ा संसार सुहाना लगता है
मदहोश हवा ...नज़रें हैं कहीं ज़ुल्फ़ें हैं कहीं हर बात जवाँ हर बात हसीं
मिटता है मेरा दिल मिट जाए तू अपनी अदाएँ रोक नहीं
अन्दाज़-ए-जवानी क्या कहिए ठोकर में ज़माना लगता हैतुम अपनी नज़र की बेचैनी समझोगी नहीं कमसिन हो अभी
आता है मज़ा अब जीने में बढ़ जाए हमारी दिल की लगी
देखा जो तुम्हें तो याद आया ये दर्द पुराना लगता है