गीतकार - शकील | गायक - लता | संगीत - गुलाम मोहम्मद | फ़िल्म - शायर | वर्ष - 1949
View in Romanमुस्कराते हुये यूँ आँख चुराया न करो
मुस्कराते हुये यूँ आँख चुराया न करो
ओ ओ ओ ओ
गुल खिलाते हुये यूँ
गुल खिलाते हुये यूँ तीर चलाया न करो
हाथ धो बैठेंगे हम दिल से किसी दिन यूँ ही
इन छलकती हुई
इन छलकती हुई आँखों से पिलाया न करो
फूट कर रोते हैं रात को दो फफोले दिल के
मोतियों को मेरी जाँ
मोतियों को मेरी जाँ ठेस लगाया न करो
दिल बहलता है रक़ीबों का मैं जल जाता हूँ
अपनी महफ़िल में हँसी
अपनी महफ़िल में हँसी मेरी उढ़ाया न करो