माना मेरे हसीन सनम तू रश्क़ ए महताब है - The Indic Lyrics Database

माना मेरे हसीन सनम तू रश्क़ ए महताब है

गीतकार - अंजान | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - जी एस कोहली | फ़िल्म - एडवेंचर्स ऑफ रॉबिन हुड | वर्ष - 1965

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माना मेरे हसीं सनम, तू रश्क़-ए-माहताब है
पर तू है लाजवाब तो, मेरा कहाँ जवाब हैहैरत से यूँ न देखिये, ज़र्रा हुआ तो क्या हुआ -२
ज़र्रा हुआ तो क्या हुआ
अपनी जगह पे जान-ए-मन, ज़र्रा भी आफ़ताब हैतेरे शबाब का सुरूर छाया जो दो जहाँ पर -२
छाया जो दो जहाँ पर
मेरी निगाह-ए-शौक़ से आया वो इनक़लाब है