जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए - The Indic Lyrics Database

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए

गीतकार - रामानंद शर्मा | गायक - शर्मा बंधु | संगीत - जयदेव | फ़िल्म - परिणय | वर्ष - 1974

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जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर की छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम
भटका हुआ मेरा मन था कोई मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लड़ती हुई नाव को जैसे मिल ना रहा हो किनारा
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो किसी ने किनारा दिखाया
शीतल बने आग चंदन के जैसी, राघव कृपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाएँ रातें, जो थी अमावस अंधेरी
युग-युग से प्यासी मरूभूमी ने जैसे सावन का संदेस पाया
जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो, उस पर कदम मैं बढ़ाऊँ
फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में, मैं ना कभी डगमगाऊँ
पानी के प्यासे को तकदीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया