श्री हनुमान चालीसा - The Indic Lyrics Database

श्री हनुमान चालीसा

गीतकार - गोस्वामी तुलसीदास | गायक - आम जनता | संगीत - | फ़िल्म - | वर्ष - 1600

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------ दोहा ---------
श्रीगुरु-चरन-सरोज-रज
निज-मन-मुकुर सुधारि ।
बरनउँ रघुबर-बिमल-जस
जो दायक फल चारि ॥
बुद्धि-हीन तनु जानिकै
सुमिरौं पवनकुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं
हरहु कलेस बिकार ॥

--------- चौपाई --------

जय हनुमान ज्ञान-गुन-सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ १ ॥

राम-दूत अतुलित-बल-धामा ।
अंजनिपुत्र - पवनसुत - नामा ॥ २ ॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति-निवार सुमति के संगी ॥ ३ ॥

कंचन-बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ ४ ॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज-जनेऊ साजै॥ ५ ॥

शंकर स्वयं केसरीनंदन ।
तेज प्रताप महा जग-बंदन ॥ ६ ॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम-काज करिबे को आतुर ॥ ७ ॥

प्रभु-चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम-लखन-सीता-मन-बसिया ॥ ८ ॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ ९ ॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचंद्र के काज सँवारे ॥ १० ॥

लाय सँजीवनि लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥ ११ ॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई ॥ १२ ॥

सहसबदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ १३ ॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥ १४ ॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सकैं कहाँ ते ॥ १५ ॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राज-पद दीन्हा ॥ १६ ॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥ १७ ॥

जुग सहस्र जोजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ १८ ॥

प्रभु-मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥ १९ ॥

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ २० ॥

राम-दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ २१ ॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डर ना ॥ २२ ॥

आपन तेज सम्हारो आपे ।
तीनौं लोक हाँक ते काँपे ॥ २३ ॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥ २४ ॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ २५ ॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ २६ ॥

सब पर राम राय सिर ताजा।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥ २७ ॥

और मनोरथ जो कोइ लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥ २८ ॥

चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत-उजियारा ॥ २९ ॥

साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर-निकंदन राम-दुलारे ॥ ३० ॥

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ।
अस बर दीन्ह जानकी माता ॥ ३१ ॥

राम-रसायन तुम्हरे पासा ।
सादर हो रघुपति के दासा ॥ ३२ ॥

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ ३३ ॥

अंत-काल रघुबर-पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि-भगत कहाई ॥ ३४ ॥

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्बसुख करई ॥ ३५ ॥

संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ ३६ ॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥ ३७ ॥

यह सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहिं बंदि महा सुख होई ॥ ३८ ॥

जो यह पढ़ै हनुमान-चलीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ ३९ ॥

तुलसीदास सदा हरि-चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥ ४० ॥

--------- दोहा ---------

पवनतनय संकट-हरन,
मंगल-मूरति-रूप ।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर-भूप ॥
सियावर रामचंद्र की जय ।
पवनसुत हनुमान की जय ।