एक अनोखा ग़म - The Indic Lyrics Database

एक अनोखा ग़म

गीतकार - ज़िया सरहदी | गायक - नूरजहां | संगीत - के दत्ता | फ़िल्म - नादान | वर्ष - 1943

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ग़रीबों का हिस्सा ग़रीबों को दे दो

ग़रीबों का हिस्सा ग़रीबों को दे दो

ग़रीबों को दे दो

ग़रीबों का

अमीरो!

अमीरो हमें सूखी रोटी ही दे दो

ग़रीबों का हिस्सा

जो पहले थी वही है अब भी हालत हमारी

थे पहले भी भूखे हैं अब भी भिखारी

हमेशा से हैं हाथ फैले हुए दो

ग़रीबों का हिस्सा

ये ऊँची इमारत ये रेशम के टुकड़े

ना कुटिया ही हमको, ना खादी के टुकड़े

हमें भी तो अपना बदन ढाँकने दो

ग़रीबों का हिस्सा

अगर रूखी सूखी ये खाकर बचेंगे

तो कल को ये गाँधी जवाहिर बनेंगे

इन्हें सिर्फ़ जीने का मौका ही दे दो

ग़रीबों का हिस्सा