छू लेने दो नाजूक होठों को कुछ और नही है जाम है ये - The Indic Lyrics Database

छू लेने दो नाजूक होठों को कुछ और नही है जाम है ये

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - रवि | फ़िल्म - काजल | वर्ष - 1965

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छू लेने दो नाज़ूक होठों को
कुछ और नहीं है जाम है ये
कुदरत ने जो हमको बख़्शा है
वो सब से हसीं इनाम है ये
शर्मा के न यूँ ही खो देना
रंगीन जवानी की घड़ियाँ
बेताब धड़कते सीनों का
अरमान भरा पैग़ाम है ये
अच्छों को बुरा साबित करना
दुनिया की पुरानी आदत है
इस मय को मुबारक चीज़ समझ
माना के बहोत बदनाम है ये