जाग दिल-ए-दीवाना, रुत जागी वस्ल-ए-यार की - The Indic Lyrics Database

जाग दिल-ए-दीवाना, रुत जागी वस्ल-ए-यार की

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - चित्रगुप्त | फ़िल्म - ऊँचे लोग | वर्ष - 1965

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जाग दिल-ए-दीवाना, रुत जागी वस्ल-ए-यार की
बसी हुई जुल्फ में आई है सबा प्यार की
दो दिल के कुछ ले के पयाम आई है
चाहत के कुछ ले के सलाम आई है
दर पे तेरे सुबह खड़ी हुई है दीदार की
एक परी कुछ शाद सी, नाशाद सी
बैठी हुई शबनम में तेरी याद की
भीग रही होगी कहीं, कली सी गुलज़ार की
आ मेरे दिल अब ख्वाबों से मुँह मोड़ ले
बीती हुई सब रातें यहीं छोड़ दे
तेरे तो दिनरात है अब आँखों में दिलदार की