चली चली रे पतंग मेरी चली रे - The Indic Lyrics Database

चली चली रे पतंग मेरी चली रे

गीतकार - राजेन्द्र कृष्ण | गायक - लता - रफी | संगीत - चित्रगुप्त | फ़िल्म - भाभी | वर्ष - 1957

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चली चली रे पतंग मेरी चली रे
चली बादलों के पार हो के डोर पे सवार
सारी दुनिया ये देख देख जली रे
यूँ मस्त हवा में लहराए
जैसे उड़न खटोला उड़ा जाए
ले के मन में लगन जैसे कोई दुल्हन
चली जाए रे सांवरिया की गली रे
रंग मेरी पतंग का धानी
है ये नील गगन की रानी
बाँकी बाँकी है उठान, है उमर भी जवान
लागे पतली कमर बड़ी भली रे
छूना मत देख अकेली
है साथ में डोर सहेली
है ये बिजली की तार, बड़ी तेज है कटार
देगी काट के रख दिलजली रे