चल उड जा रे पंछी, के अब ये देस हुआ बेगाना - The Indic Lyrics Database

चल उड जा रे पंछी, के अब ये देस हुआ बेगाना

गीतकार - राजेन्द्र कृष्ण | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - चित्रगुप्त | फ़िल्म - भाभी | वर्ष - 1957

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चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देस हुआ बेगाना
खतम हुए दिन उस डाली के जिस पर तेरा बसेरा था
आज यहाँ और कल हो वहाँ ये जोगी वाला फेरा था
ये तेरी जागीर नहीं थी चार घड़ी का डेरा था
सदा रहा है इस दुनिया में किसका आब-ओ-दाना
तूने तिनका-तिनका चुनकर नगरी एक बसाई
बारिश में तेरी भीगी पाख़े, धूप में गर्मी खाई
ग़म ना कर जो तेरी मेहनत तेरे काम ना आई
अच्छा है कुछ ले जाने से देकर ही कुछ जाना
भूल जा अब वो मस्त हवा, वो उड़ना डाली-डाली
जग की आँख का कांटा बन गई चाल तेरी मतवाली
कौन भला उस बाग को पूछे, हो ना जिसका माली
तेरी किस्मत में लिखा है जीते जी मर जाना
रोते हैं वो पंख पखेरू, साथ तेरे जो खेले
जिनके साथ लगाये तू ने अरमानों के मेले
भीगी अँखियों से ही उनकी आज दुआएं ले ले
किसको पता अब इस नगरी में कब हो तेरा आना