हर कदम पर नित नए सांचे में - The Indic Lyrics Database

हर कदम पर नित नए सांचे में

गीतकार - हमायत अली शायरी | गायक - नूरजहां | संगीत - खलील अहमद | फ़िल्म - मेरे महबूब (पाकिस्तानी-फिल्म) | वर्ष - 1966

View in Roman ठोकरें खा कर तो सुनते हैं सम्भल जाते हैं लोग
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हर क़दम पर नित नए साँचे में ढल जाते हैं लोग
देखते ही देखते कितने बदल जाते हैं लोगकिस लिये कीजे किसी गुम्गश्ता जन्नत की तलाश
जब कि मिट्टी के खिलोनों से बहल जाते हैं लोगशमा की मानिन्द अह्ल-ए-अंजुमन से बे-नियाज़
अकसर अपनी आग में चुप चाप जल जाते हैं लोग'शयर' उन की दोस्ती का अब भी दम भरते हैं आप
ठोकरें खा कर तो सुनते हैं सम्भल जाते हैं लोग