गीतकार - प्रदीप | गायक - मन्ना डे, सहगान | संगीत - सी रामचंद्र | फ़िल्म - तलाक | वर्ष - 1958
View in Romanबिगुल बज रहा आज़ादी का
गगन गूँजता नारों से
मिला रही है आज हिन्द की
मिट्टी नज़र सितारों से
एक बात कहनी है लेकिन
आज देश के प्यारों से
जनता से नेताओं से
फ़ौज़ों की खड़ी क़तारों से
कहनी है इक बात हमें इस
देश के पहरोदारों से
सम्भल के रहना अपने घर में
छिपे हुये ग़द्दारों से
झाँक रहे हैं अपने दुश्मन
अपनी ही दीवारों से
को: सम्भल के रहना अपने घर में
छिपे हुये ग़द्दारों से
म: ऐ भारत माता के बेटो-2
सुनों समय की बोली को
फैलाती जो फूट यहाँ पर
दूर करो उस टोली को
को: ऐ भारत माता के बेटो
सुनों समय की बोली को
फैलाती जो फूट यहाँ पर
दूर करो उस टोली को
म: कभी न जलने देना फिर से
भेद-भाव की होली को
जो गाँधी को चीर गई थी
याद करो उस गोली को
सारी बस्ती जल जाती है
मुट्ठी भर अंगारों से
को: सम्भल के रहना अपने घर में
छिपे हुये ग़द्दारों से
म: जागो तुमको बापू की
जागीर की रक्षा करनी है
को: जागो तुमको बापू की
जागीर की रक्षा करनी है
म: जागों लाखों लोगों की
तक़दीर की रक्षा करनी है
को: जागों लाखों लोगों की
तक़दीर की रक्षा करनी है
म: अभी-अभी जो बनी है उस
तसवीर की रक्षा करनी है
को: अभी-अभी जो बनी है उस
तसवीर की रक्षा करनी है
म: होशियार
को: होशियार
म: होशियार तुमको अपने
कश्मीर की रक्षा करनी है
को: होशियार तुमको अपने
कश्मीर की रक्षा करनी है
म: आती है आवाज़ यही
मन्दिर मसजिद गुरुद्वारों से
को: सम्भल के रहना अपने घर में
छिपे हुये ग़द्दारों से$