निगाहें क्यों भटकती हैं, कदम क्यों डगमगाते हैं - The Indic Lyrics Database

निगाहें क्यों भटकती हैं, कदम क्यों डगमगाते हैं

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - लक्ष्मीकांत प्यारेलाल | फ़िल्म - बहारों की मंज़िल | वर्ष - 1968

View in Roman

निगाहें क्यों भटकती हैं, कदम क्यों डगमगाते हैं
हम ही तक है हर एक मंज़िल, चले आओ, चले आओ
तुम अपने हर कदम का सिलसिला इस दिल से पाओगे
कहीं जाओ मगर मेरी ही ज़ानिब चल के आओगे
ठहर जाने से क्या हासिल चले आओ, चले आओ
तुम्हे हर मोड़ पर एक याद आईना दिखायेगी
ख़यालो मे हमारी ही कोई तस्वीर आयेगी
भूलाना है बहोत मुश्किल, चले आओ, चले आओ
ये कैसा दर्द है आँखो में कैसी सोगवारी है
जुनून हो जायेगा एक दिन यही जो बेकरारी है
ये चाहत है बड़ी कातिल, चले आओ, चले आओ