मन तड़पत हरि दरसन को आज - The Indic Lyrics Database

मन तड़पत हरि दरसन को आज

गीतकार - शकील | गायक - रफी | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - बैजू बावरा | वर्ष - 1952

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मन तड़पत हरि दरसन को आज
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज
आ, विनती करत, हूँ, रखियो लाज, मन तड़पत...
तुम्हरे द्वार का मैं हूँ जोगी
हमरी ओर नज़र कब होगी
सुन मोरे व्याकुल मन की बात, तड़पत हरी दरसन...
बिन गुरू ज्ञान कहाँ से पाऊँ
दीजो दान हरी गुन गाऊँ
सब गुनी जन पे तुम्हारा राज, तड़पत हरी...
मुरली मनोहर आस न तोड़ो
दुख भंजन मोरे साथ न छोड़ो
मोहे दरसन भिक्शा दे दो आज दे दो आज,