शफ़ाक़ हो मैं कैसे कहुं जान ए मन - The Indic Lyrics Database

शफ़ाक़ हो मैं कैसे कहुं जान ए मन

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - जगजीत सिंह | संगीत - बासु चक्रवर्ती | फ़िल्म - नरगिस | वर्ष - 1993

View in Roman तेरा दिल सुने मेरी बात
ये आँखों की सियाही
ये होठों का उजाला
यही हैं मेरे दिन-रात ||स्थायी||काश तुझको पता हो
तेरे रुख़-ए-रौशन से
तारे खिले हैं
दिये जले हैं
दिल में मेरे कैसे-कैसे
महकने लगीं हैं, वहीं से मेरी रातें
जहाँ से हुआ तेरा साथ ||१||पास तेरे आया था
मैं तो काँटों पे चलके
लेकिन यहाँ तो
क़दमों के नीचे
फ़र्श बिछ गये गुल के
कि अब ज़िन्दगानी है फ़स्ल-ए-बहाराँ
जो हाथों में रहे तेरा हाथ ||२||'>

शफ़क़ हो, फूल हो, शबनम हो, माहताब हो तुम
नहीं जवाब तुम्हारा कि लाजवाब हो तुम ||शे'र||मैं कैसे कहूँ जानेमन
तेरा दिल सुने मेरी बात
ये आँखों की सियाही
ये होठों का उजाला
यही हैं मेरे दिन-रात ||स्थायी||काश तुझको पता हो
तेरे रुख़-ए-रौशन से
तारे खिले हैं
दिये जले हैं
दिल में मेरे कैसे-कैसे
महकने लगीं हैं, वहीं से मेरी रातें
जहाँ से हुआ तेरा साथ ||१||पास तेरे आया था
मैं तो काँटों पे चलके
लेकिन यहाँ तो
क़दमों के नीचे
फ़र्श बिछ गये गुल के
कि अब ज़िन्दगानी है फ़स्ल-ए-बहाराँ
जो हाथों में रहे तेरा हाथ ||२||