हर शाम शाम-ए-ग़म है - The Indic Lyrics Database

हर शाम शाम-ए-ग़म है

गीतकार - शेवन रिज़वी | गायक - तलत | संगीत - हाफिज खान | फ़िल्म - मेरा सलाम | वर्ष - 1957

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हर शाम शाम-ए-ग़म है
हर रात है अंधेरी
अपना नहीं है कोई
क्या ज़िंदगी है मेरी

ग़म सहते सहते ग़म की
(तसवीर बन गया हूँ)-2
जा ऐ बहार-ए-दुनिया
हालत न पूछ मेरी
क्या ज़िंदगी है मेरी
हर शाम शाम-ए-ग़म है

सामान-ए-ज़िंदगी में
(कुछ भी नहीं बचा है)-2
एक दर्द रह गया है
और एक याद तेरी
क्या ज़िंदगी है मेरी
हर शाम शाम-ए-ग़म है ...

खुशियों का एक दिन भी
(आया न ज़िंदगी में)-2
पछता रहा हूँ मैं तो
दुनिया में आ के तेरी
क्या ज़िंदगी है मेरी
हर शाम शाम-ए-ग़म है ...$