जब एक कज़ा से गुज़ारो तो इक और कज़ा मिल जाति है - The Indic Lyrics Database

जब एक कज़ा से गुज़ारो तो इक और कज़ा मिल जाति है

गीतकार - गुलजार | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - आर डी बर्मन | फ़िल्म - देवता | वर्ष - 1978

View in Roman

जब एक कज़ा से गुज़रो तो इक और कज़ा मिल जाती है
मरने की घड़ी मिलती है अगर जीने की रज़ा मिल जाती है
जब एक कज़ा से ...इस दर्द के बहते दरिया में हर ग़म है मरहम कोई नहीं
हर दर्द का ईसा मिलता है ईसा की मरियम कोई नहीं
साँसों की इजाज़त मिलती नहीं जीने की सज़ा मिल जाती है
जब एक कज़ा से ...मैं वक़्त का मुज़रिम हूँ लेकिन इस वक़्त ने क्या इंसाफ़ किया
जब तक जीते हो जलते रहो जल जाओ तो कहना माफ़ किया
जल जाए ज़रा सी चिंगारी तो और हवा मिल जाती है
जब एक कज़ा से ...