हक़ माँगते हैं अपने पसीने का - The Indic Lyrics Database

हक़ माँगते हैं अपने पसीने का

गीतकार - राजिंदर कृष्ण | गायक - रफी | संगीत - मदन मोहन | फ़िल्म - बाप बेटे | वर्ष - 1959

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हक़ माँगते हैं अपने पसीने का
अधिकार हमें भी है जीने का

तुम लाख अमीरों ऐश करो हम देख तुम्हें कब जलते हैं
साए में तुम्हारे महलों के लेकिन कितने ग़म पलते हैं
देखो तो नज़ारा आके कभी ग़म खाने आँसू पीने का
हक़ माँगते हैं ...

मेहनत पे हमारी ही तुमने ये शीशमहल है खड़ा किया
तुम जिनको छोटा कहते हो इन छोटों ने तुमको बड़ा किया
क्यों साल के पीछे चुभता है फिर बोनस एक महीने का
हक़ माँगते हैं ...

तुम खुद भी जियो और जीने दो है माँग यही मज़दूरों की
इन्साफ़ करो इन्साफ़ करो आह न लो मज़दूरों की
शोला न कहीं बनकर भड़के अब तक जो धुआँ है सीने का
हक़ माँगते हैं ...$