जबसे हम तुम बहारों में - The Indic Lyrics Database

जबसे हम तुम बहारों में

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - मोहम्मद रफी, मुकेश, सुमन कल्याणपुर, कमल बरोट | संगीत - चित्रगुप्त | फ़िल्म - मैं शादी करने चला | वर्ष - 1962

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जब से हम तुम, बहारों में, हो बैठे गुम, नज़ारों में
जिअसे ये ज़िंदगी, जागी आँखों का ख़ाब हैमिलना तो था हमें, इस दिल की राह में
अफ़साना बन गये, (दीवाने जिनकी चाह में)-२
अफ़साने थे किसी दिन के, दीवाने थे किसी दिन के
जैसे ये रागिनी, जागी आँखों का ख़्वाब हैचाहत के नाम का, चाहत का जाम है
हलकी हलकी नशीली (भीगी भीगी शाम है)-२
मेरे सपने, तेरी राहें
तेरे ???, मेरी बाहें
जैसे ये बेख़ुदी, जागी आँखों का ख़्वाब हैजब से हम तुम बहारों में हो बैठे गुम नज़ारों में
जैसे ये ज़िंदगी प्यासी आँखों का ख़्वाब हैहोंठों पे प्यार की, मीठी सी रागिनी
चहरे पे आरज़ू की धीमी-धीमी रोशनी
मेरी धड़कन, तेरी बातें
तेरे जलवे, मेरी आँखें
जैसे ये रोशनी, जागी आँखों का ख़्वाब हैजो नैना मोड़ के, दो नैना जोड़ दे
जो इतना शोख है वो शर्माना भी छोड़ दे
ये शोखी सी निगाहों की
ये चोरी सी अदाओं की
जैसे ये दिल्लगी, जागी आँखों का ख़्वाब है