ऐसे तो ना देखो के बहक जाएं कहीं हमी - The Indic Lyrics Database

ऐसे तो ना देखो के बहक जाएं कहीं हमी

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - मोहम्मद रफ़ी, सुमन कल्याणपुर | संगीत - रोशन | फ़िल्म - भीगी रात | वर्ष - 1965

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र: ऐसे तो न देखो के बहक जाएं कहीं हम
आखिर को इक इनसां हैं फ़रिश्ता तो नहीं हम
सु: हाय, ऐसे न कहो बात के मर जाएं यहीं हम
आखिर को इक इनसां हैं फ़रिश्ता तो नहीं हमर: अंगड़ाई सी लेती है जो खुशबू भरी ज़ुल्फ़ें
खुशबू भरी ज़ुल्फ़ें
गिरती है तेरे सुर्ख लबों पर तेरी ज़ुल्फ़ें
लबों पर तेरी ज़ुल्फ़ें
ज़ुल्फ़ें न तेरी चूम लें, ऐ महजबीं हम
आखिर को इक इनसां हैं फ़रिश्ता तो नहीं हमसु: सुन सुन के तेरी बात नशा छाने लगा है
नशा छाने लगा है
खुद अपने पे भी प्यार सा कुछ आने लगा है
आने लगा है
रखना है कहीं पाँव तो रखते हैं कहीं हमदोनों: आखिर को इक इनसां हैं फ़रिश्ता तो नहीं हम
आहा हा आहा हा हा, हम्म हम्म हम्म हम्म ...
आहा हा आहा हा हा, हम्म हम्म हम्म हम्म ...