कभी होता भरोसा मत उलझन में पद इंसान: - The Indic Lyrics Database

कभी होता भरोसा मत उलझन में पद इंसान:

गीतकार - भरत व्यास | गायक - मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, मन्ना दे | संगीत - एस एन त्रिपाठी | फ़िल्म - | वर्ष - 1957

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कभी होता भरोसा कभी होता भरम
पड़ा उलझन में है इनसान
तू है या नहीं भगवान -२र : मत उलझन में पड़ इनसान -२
तेरे सोचे बिना जब होता है सब तो समझ ले कहीं है भगवानल : तू है या नहीं भगवानवो है अगर तो क्यों ना दिखाई दे कैसी ये उल्टी रीत है
झूठा है वो उसके झूठे ही भय से झूठा जगत भयभीत है
र : घन-घन गरजती हुई ये घटाएँ किसका सुनाती गीत हैं
लहराते सागर की लहरों में गूँजे किसका अमर संगीत है
जो दाता है सबका महान
दिया जिसने जनम दिया जिसने ये तन क्यों न उसको सका तू पहचान
मत उलझन में पड़ ...म : क्यों बालक की ममता रोती है क्यों अनहोनी जग में होती है
मंदिर में दीप जलाते हैं जो उनके घर की बुझती ज्योति है क्यों
अनहोनी जग में होती है क्योंर : जीवन-मरण हानि और फ़ायदा कर्मों का फल है उसका भी क़ायदा
इनसान की कुछ भी चलती नहीं करनी अपनी कभी टलती नहीं
भक्ति के भाव से उसको तू जान ले श्रद्धा की आँखों से उसको तू पहचान ले
होता नहीं क्या अच.म्भा बड़ा आकाश किसके सहारे खड़ा
फूलों में रंग झरनों में तरंग धरती में उमंग जो उठाता
वो कौन क्या तुम
बादल में बिजली पहाड़ों में फूल जो खिलाता
वो कौन क्या तुम
वो है सर्वशक्तिमान कण-कण में बसे पर न दिखाई दे
उसकी शक्ति को तू पहचान
मत उलझन में पड़ ...