ऐ दिल लाया है बहार अपनों का प्यार - The Indic Lyrics Database

ऐ दिल लाया है बहार अपनों का प्यार

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - कविता कृष्णमुर्ती - हरिहरन | संगीत - राजेश रोशन | फ़िल्म - क्या कहना | वर्ष - 2000

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ऐ दिल लाया है बहार अपनों का प्यार क्या कहना
मिले हम छलक उठा ख़ुशी का खुमार क्या कहना
खिले खिले चेहरों से आज घर है मेरा गुल-ए-गुलज़ार क्या कहना
हम तुम यूँही मिलते रहें महफ़िल यूँ ही सजती रहे
बस प्यार की यही एक धुन हर सुबह-ओ-शाम बजती रहे
गले में महकता रहे प्यार भरी बाहों का हार क्या कहना
दिल का कोई टुकड़ा कभी दिल से जुदा होता नहीं
अपना कोई जैसा भी हो अपना है वो दूजा नहीं
यही वो मिलन है जो सचमुच है दिल का करार क्या कहना
कुछ अपने ही तक यूँ नहीं ये है सवाल सबके लिए
जीना है तो जग में जियो बनके मिसाल सबके लिए
देखो कैसा महक रहा प्यार भरी बाँहों का हार क्या कहना
जो हो गया सो हो गया लोगों से तू डरना नहीं
साथी तेरे हैं और भी दुनिया में तू तन्हा नहीं
सामन करेंगे मिलके चाहें दस हों चाहें हज़ार क्या कहना
खिले खिले चेहरों से आज जग है मेरा गुल-ए-गुलज़ार क्या कहना