क्या जानूं सजन होती है क्या ग़म की शाम - The Indic Lyrics Database

क्या जानूं सजन होती है क्या ग़म की शाम

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - राहुल देव बर्मन | फ़िल्म - बहारों के सपने | वर्ष - 1967

View in Roman

क्या जानूं सजन होती है क्या ग़म की शाम
जल उठे सौ दीए, जब लिया तेरा नाम
काँटों मे मैं खड़ी नैनों के द्वार पे
निस दिन बहार के देखूँ सपने
चेहरे की धूल क्या चंदा की चाँदनी
उतरी तो रह गई मुख पे अपने
जब से मिली नज़र माथे पे बन गए
बिंदिया नयन तेरे देखो सजना
धर ली जो प्यार से मेरी कलाईयाँ
पिया तेरी उंगलिया हो गई कंगना