काब बनके बिखरती जाति हैं - The Indic Lyrics Database

काब बनके बिखरती जाति हैं

गीतकार - सल्तनत कैसरी | गायक - गुलाम अली | संगीत - रफीक हुसैन | फ़िल्म - सादगी (गैर-फिल्म) | वर्ष - 1997

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ख़ाब बनके बिखरती जाती है
रात दिल में उतरती जाती हैरंग किसके चुरा लिये उसने
रोज़-ओ-शब वो निखरती जाती हैआ के उम्मीद में जला के चराग़
आज तो वो सँवरती जाती हैआ गया वो तो उम्र भर की थकन
जैसे पल में उतरती जाती है