गए दिनों का सूरग लेकर किधर से आया किधर गया वो - The Indic Lyrics Database

गए दिनों का सूरग लेकर किधर से आया किधर गया वो

गीतकार - नासिर काज़मी | गायक - आशा भोंसले, गुलाम अली | संगीत - गुलाम अली | फ़िल्म - मेराज-ए-ग़ज़ल (गैर फ़िल्म) | वर्ष - 1983

View in Roman तेरी गली तक तो हमने देखा था फिर न जाने किधर गया वोबस एक मोती सी छब दिखाकर बस एक मीठी सी धुन सुनाकर
सितारा-ए-शाम बन के आया ब-रंग-ए-ख़ाब-ए-सहर गया वोख़ुशी की रात हो या ग़म का मौसम नज़र उसे ढूँढती है हरदम
वो बू-ए-गुल था कि नग़्मा-ए-जाँ मेरे तो दिल में उतर गया वोन अब वो यादों का चढ़ता दरिया न फ़ुर्सतों की है ओस बरखा
यूँही ज़रा सी कसक है दिल में जो ज़ख़्म गहरा था भर गया वोकुछ अब सम्भलने लगी है जाँ भी बदल चला दौर-ए-आसमाँ भी
जो रात भारी थी टल गई है जो दिन कड़ा था गुज़र गया वोबस एक मंज़िल है बुल-हवस की हज़ार रस्ते हैं अहल-ए-दिल के
यही तो है फ़र्क़ मुझमें उसमें गुज़र गया मैं ठहर गया वोशिकस्ता-पा राह में खड़ा हूँ गये दिनों को भूलता हूँ
जो क़ाफ़िला मेरा हमसफ़र था मिसाल-ए-गर्द-ए-सफ़र गया वोमेरा तो ख़ूँ हो गया है पानी सितमगरों की पलक न भीगी
जो नाला उट्ठा था रात दिल से न जाने क्यूँ बे-असर गया वोवो मयकदे को जगाने वाला वो रात की नींद उड़ाने वाला
ये आज क्या उसके जी में आई कि शाम होते ही घर गया वोवो जिसके शाने पे हाथ रख कर सफ़र किया तूने मंज़िलों का
तेरी गली से न जाने क्यूँ आज सर झुकाये गुज़र गया वो
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गये दिनों का सुराग़ लेकर किधर से आया किधर गया वो
अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वोवो हिज्र की रात का सितारा वो हम-नफ़स हम-सुख़न हमारा
सदा रहे उसका नाम प्यारा सुना है कल रात मर गया वोवो रात का बे-नवा मुसाफ़िर वो तेरा शाइर वो तेरा 'नासिर'
तेरी गली तक तो हमने देखा था फिर न जाने किधर गया वोबस एक मोती सी छब दिखाकर बस एक मीठी सी धुन सुनाकर
सितारा-ए-शाम बन के आया ब-रंग-ए-ख़ाब-ए-सहर गया वोख़ुशी की रात हो या ग़म का मौसम नज़र उसे ढूँढती है हरदम
वो बू-ए-गुल था कि नग़्मा-ए-जाँ मेरे तो दिल में उतर गया वोन अब वो यादों का चढ़ता दरिया न फ़ुर्सतों की है ओस बरखा
यूँही ज़रा सी कसक है दिल में जो ज़ख़्म गहरा था भर गया वोकुछ अब सम्भलने लगी है जाँ भी बदल चला दौर-ए-आसमाँ भी
जो रात भारी थी टल गई है जो दिन कड़ा था गुज़र गया वोबस एक मंज़िल है बुल-हवस की हज़ार रस्ते हैं अहल-ए-दिल के
यही तो है फ़र्क़ मुझमें उसमें गुज़र गया मैं ठहर गया वोशिकस्ता-पा राह में खड़ा हूँ गये दिनों को भूलता हूँ
जो क़ाफ़िला मेरा हमसफ़र था मिसाल-ए-गर्द-ए-सफ़र गया वोमेरा तो ख़ूँ हो गया है पानी सितमगरों की पलक न भीगी
जो नाला उट्ठा था रात दिल से न जाने क्यूँ बे-असर गया वोवो मयकदे को जगाने वाला वो रात की नींद उड़ाने वाला
ये आज क्या उसके जी में आई कि शाम होते ही घर गया वोवो जिसके शाने पे हाथ रख कर सफ़र किया तूने मंज़िलों का
तेरी गली से न जाने क्यूँ आज सर झुकाये गुज़र गया वो