गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - तलत महमूद | संगीत - गुलाम मोहम्मद | फ़िल्म - शीशा | वर्ष - 1952
View in Romanकिसी को बनाना, किसी को मिटाना
अजब है ये दुनिया, अजब ये ज़मानाहैं दोनों ही इन्सां पले एक चमन में
वो ही एक थी जान दोनों के तन में
मगर कोई ओढ़ेगा फूलों की चादर
है मुश्क़िल किसी के दिले सर छुपाना
अजब है ये दुनिया ...हैं सर पर किसी के बहारों के सायें
किसी पर बलाओं के बादल हैं छाये
किसी के लिये सिर्फ़ आँसू की बुन्दें
किसी के लिये मोतीओं का खज़ाना
अजब है ये दुनिया ...कोई चैन से है, तरसता है कोई
किसी के उजड़ने से बचता?? है कोई
न जाने ये अन्धेर कब तक रहेगा
ज़मीं एक की दुसरे का ठिकाना
अजब है ये दुनिया ...