दिल धुंधता है फिर वाही फ़र्सत के रात दिन - The Indic Lyrics Database

दिल धुंधता है फिर वाही फ़र्सत के रात दिन

गीतकार - गुलजार | गायक - लता मंगेशकर, भूपिंदर | संगीत - मदन मोहन | फ़िल्म - मौसम | वर्ष - 1975

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दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन-(२)
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए
दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन...जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर-(२)
आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को
औंधे पड़े रहे कभी करवट लिये हुए
दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन...या गरमियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें-(२)
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए
दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन...बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर-(२)
वादी में गूँजती हुई खामोशियाँ सुनें
आँखों में भीगे भीगे से लम्हे लिये हुए
दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन...