कैसी दीवानगी है ओ तुझ पर गगन से - The Indic Lyrics Database

कैसी दीवानगी है ओ तुझ पर गगन से

गीतकार - जावेद अख्तर | गायक - सुखविंदर सिंह, प्रीति, पिंकी | संगीत - आदेश श्रीवास्तव | फ़िल्म - चलते चलते | वर्ष - 2003

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प्री : कैसी दीवानगी है -३
सब कुछ कोई भुला के
निकला है घर जला के
कैसी दीवानगी हैसु : ( ओ तुझ पर गगन से बरसी अगन क्यूँ है
पाया चमन से काँटों का बन क्यूँ है ) -२
क्या है उलझन हारा क्यूँ मन थका है क्यूँ तन रेको : सब टूट गया सब छूट गया कोई लूट गया जैसे
कोई छोड़ गया दिल तोड़ गया झँझोड़ गया जैसे
सब टूट गया
सब छूट गया
सब टूट गया सब छूट गया कोई लूट गया जैसे
कोई छोड़ गया दिल तोड़ गया झँझोड़ गया जैसे
सु : ओ तुझ पर गगन से बरसी अगन क्यूँ है
पाया चमन से काँटों का बन क्यूँ हैहो प्यासी हवाएँ जलती दिशाए रेती की हैं सारी घटाएँ
ओ रेत जो बरसे तो ये मन तरसे लौट के जाएँ कैसे इधर से
को : अब जाओ जिधर देखोगे उधर सुनसान नगर सारे
दिल बिगड़ गए बाग़ उजड़ गए देश उखड़ गए सारे
अब जाओ जिधर
देखोगे उधर
अब जाओ जिधर देखोगे उधर सुनसान नगर सारे
दिल बिगड़ गए बाग़ उजड़ गए देश उखड़ गए सारे
सु : हो ओ तुझ पर गगन से बरसी अगन क्यूँ है
पाया चमन से काँटों का बन क्यूँ हैप्री : कैसी दीवानगी है -३
सब कुछ कोई भुला के
निकला है घर जला के
कैसी दीवानगी है रेसु : जीना सितम है उम्मीद कम है बस इक दिल है और इतना ग़म है
काली हैं रातें कड़वी हैं बातें दिल खा रहा है मातों पे मातें
को : अब यहाँ-वहाँ तू जाए जहाँ वो प्यार कहाँ प्यारे
वो अपनों का वो सपनों का संसार कहाँ प्यारे
अब यहाँ-वहाँ
तू जाए जहाँ
अब यहाँ-वहाँ तू जाए जहाँ वो प्यार कहाँ प्यारे
वो अपनों का वो सपनों का संसार कहाँ प्यारे
सु : हो तुझ पर गगन से बरसी अगन क्यूँ है
पाया चमन से काँटों का बन क्यूँ है
क्या है उलझन हारा क्यूँ मन झुका है क्यूँ तन रे
को : सब टूट गया सब छूट गया कोई लूट गया जैसे
कोई छोड़ गया दिल तोड़ गया झँझोड़ गया जैसे
सब टूट गया
सब छूट गया
सब टूट गया सब छूट गया कोई लूट गया जसिए
कोई छोड़ गया दिल तोड़ गया झँझोड़ गया जैसे