इतनी नाजुक ना बनो - The Indic Lyrics Database

इतनी नाजुक ना बनो

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - चित्रगुप्त | फ़िल्म - वासना | वर्ष - 1968

View in Roman

इतनी नाजुक न बनो, हाए इतनी नाजुक न बनो
हद के अंदर हो नज़ाकत तो अदा होती है
हद से बढ़ जाए तो आप अपनी सज़ा होती है
जिस्म का बोझ उठाए नहीं उठता तुमसे
ज़िंदगानी का कड़ा बोझ सहोगी कैसे
तुम जो हल्की सी हवाओं में लचक जाती हो
तेज झोंको के थपेड़ों में रहोगी कैसे
ये ना समझो के हर एक राह में कलियाँ होंगी
राह चलनी है तो काँटों पे भी चलना होगा
ये नया दौर है इस दौर में जीने के लिए
हुस्न को हुस्न का अंदाज़ बदलना होगा
कोई रुकता नहीं ठहरे हुए राही के लिए
जो भी देखेगा वो कतरा के गुज़र जाएगा
हम अगर वक़्त के हमराह ना चलने पाए
वक़्त हम दोनों को ठुकरा के गुज़र जाएगा