है कली कली के लब पर, तेरे हुस्न का फ़साना - The Indic Lyrics Database

है कली कली के लब पर, तेरे हुस्न का फ़साना

गीतकार - कैफ़ी आज़मी | गायक - रफी | संगीत - खय्याम | फ़िल्म - लाला रुख | वर्ष - 1958

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है कली कली के लब पर, तेरे हुस्न का फ़साना
मेरे गुल्सिताँ का सब कुछ, तेरा सिर्फ़ मुस्कुराना

ये खुले खुले से गेसू, उठे जैसे बदलियाँ सी,
ये झुकी झुकी निगाहें, गिरे जैसे बिजलियाँ सी
तेरे नाचते क़दम में है बहार का खज़ाना
है कली कली के लब पर, तेरे हुस्न का फ़साना ...

तेरा झूमना मचलना, ये नज़र बदल-बदल के
मेरा दिल धड़क रहा है, तू लचक सँभल-सँभलके
कहीं रुक ना जाये ज़ालिम इस मोड़ पर ज़माना
है कली कली के लब पर, तेरे हुस्न का फ़साना ...$