महफिल से उठ जानेवालो तुम लोगों पर क्या इल्जाम - The Indic Lyrics Database

महफिल से उठ जानेवालो तुम लोगों पर क्या इल्जाम

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - रोशन | फ़िल्म - दूज का चांद | वर्ष - 1964

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महफ़िल से उठ जानेवालों, तुम लोगों पर क्या इल्ज़ाम
तुम आबाद घरों के बासी, मैं आवारा और बदनाम
मेरे साथी, मेरे साथी, मेरे साथी खाली जाम
मेरे साथी खाली जामदो दिन तुम ने प्यार जताया, दो दिन तुम से मेल रहा
अच्छा खासा वक़्त कटा, और अच्छा खासा खेल रहा
ही ही (hollow laughter)
अच्छा खासा खेल रहा
अब उस खेल का फ़िक्र ही कैसा, वक्त कटा और खेल तमाम
मेरे साथी ...तुम ने ढूँढी सुख की दौलत, मैंने पाला ग़म का रोग
कैसे बनाता कैसे निभाता, ये रिश्ता और ये संजोग
मैं ने दिल को दिल से तोला, तुम ने माँगे प्यार के दाम
मेरे साथी ...तुम दुनिया को बेहतर समझे, मैं पागल खारखार (?) हुआ
तुम को अपना नहीं निकला था, खुद से भी बेज़ार रहा
ही ही (hollow laughter again)
खुद से भी बेज़ार रहा
देख लिया बर्खास्त (?) तमाशा, जान लिया अपना अन्जाम
मेरे साथी ...
मेरे साथी खाली जाम