नाज़ों के पले काँटों पे चलें - The Indic Lyrics Database

नाज़ों के पले काँटों पे चलें

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - तलत महमूद | संगीत - सचिन देव बर्मन | फ़िल्म - शहनशाह | वर्ष - 1953

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नाज़ों के पले काँटों पे चलें ऐसा भी जहां में होता है
तक़दीर के ज़ालिम हाथों से दिल ख़ून के आँसू रोता है
नित जिन में चिराग़ाँ रहता था, ख़ाक उड़ती है उन ऐवानों में
मख़मल पे न रखते थे जो कदम फिरते हैं वो रेगिस्तानों में
चलने का सहारा कोई नहीं रुकने का ठिकाना कोई नहीं
इस हाल में काम आनेवाला अपना-बेगाना कोई नहीं
दुनिया में किसी को भी अपनी क़िस्मत का लिखा मालूम नहीं
सामान हैं लाखों बरसों के और कल का पता मालूम नहीं