सीतम द हजार शुक्र के मन दर्पण है जग सारा - The Indic Lyrics Database

सीतम द हजार शुक्र के मन दर्पण है जग सारा

गीतकार - पं अनुज | गायक - शांता आप्टे | संगीत - मास्टर कृष्णराव | फ़िल्म - गोपाल कृष्ण | वर्ष - 1938

View in Roman

सितम थे ज़ुल्म थे आफ़त थे इंतज़ार के दिन
हज़ार शुक्‌र के देखेंगे अब बहार दिन -2

आवाज़ की दुनिया के दोस्तो
मैं ज़रा देर से पहुँचा
इसके लिये मुझे अफ़सोस है
लेकिन आज आप लोगों को एक बिल-कुल
नया गाना सुनाता हूँ
ready

आ ह आह हा हा हा हा
मन दरपन है जग सारा
ये जग सारा
मन दरपन है जग सारा

मन अन्धियारा
जग अन्धियारा
मन दरपन है जग सारा
आ ह आह हा हा हा हा

उल्टी है ये जानी दुनिया
दुख का दुख कैसा -2
ऐसा
आँखों में तिल जैसे काला -2
रूप अन्धेरा
रूप अन्धेरा काम उजारा

मन दरपन है जग सारा

बेरी गाये कैसे सोयें -2
काम किये दिन नाहीं होये
नीरस
दुख की नैयाँ और खेवैया
आप की नैयाँ अपनी नैया
जाल उठा ले माझी बन जा -2
वो है किनारा ये है धारा -2