किसी को दे के दिल कोई नवा संज ए फुगान क्यूं हो - The Indic Lyrics Database

किसी को दे के दिल कोई नवा संज ए फुगान क्यूं हो

गीतकार - ग़ालिब | गायक - गुलाम अली | संगीत - | फ़िल्म - यादगर गजलें (गैर फिल्म) | वर्ष - 1990

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किसी को दे के दिल कोई नवा संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह क्यूँ होवो अपनी कूँ न छोड़ेंगे हम अपनी बज़्ज़ा क्यूँ बदलें
सुबक-सर बनके क्या पूछे के हमसे सरग़राँ क्यूँ होकिया ग़म-ख़ार ने रुसवा लगे आग इस मुहब्बत को
न लावे ताब जो ग़म की वो मेरा राज़दाँ क्यूँ होये कह सकते हो हम दिल में नहीं हैं पर ये बतलाओ
के जब दिल में तुम्हीं तुम हो तो आँखों से निहाँ क्यूँ होकहा तुमने के क्यूँ हो ग़ैर से मिलने में रुस्वाई
बजा कहते हो सच कहते हो फिर कहियो कि हाँ क्यूँ होनिकाला चाहता है काम क्या तानों से तू 'ग़ालिब'
तेरे बेमेहर कहने से वो तुझ पर मेहरबाँ क्यूँ हो