खो न जाएँ ये तारे ज़मीं पर - The Indic Lyrics Database

खो न जाएँ ये तारे ज़मीं पर

गीतकार - प्रसून जोशी | गायक - शंकर महादेवन | संगीत - शंकर - एहसान - लॉय | फ़िल्म - तारे ज़मीं पर | वर्ष - 2007

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देखो इन्हें ये हैं ओस की बूँदें
पत्तों की गोद में आसमां से कूदें
अंगड़ाई लें फिर करवट बदलकर
नाज़ुक से मोती हँस दें फिसलकर
खो ना जाएँ ये तारे ज़मीं पर
ये तो हैं सर्दी में धूप की किरणें
उतरें जो आँगन को सुनहरा सा करने
मन के अँधेरों को रोशन सा कर दें
ठिठुरती हथेली की रंगत बदल दें
खो न जाएँ ये तारे ज़मीं पर
जैसे आँखों की डिबिया में निंदिया
और निंदिया में मीठा सा सपना
और सपने में मिल जाए फ़रिश्ता सा कोई
जैसे रंगों भरी पिचकारी
जैसे तितलियाँ फूलों की क्यारी
जैसे बिना मतलब का प्यारा रिश्ता हो कोई
ये तो आशा की लहर हैं
ये तो उम्मीद की सहर हैं
ख़ुशियों की नहर हैं
खो न जाएँ ये तारे ज़मीं पर
देखो रातों के सीने पे ये तो
झिलमिल किसी लौ से उगे हैं
ये तो अंबिया की ख़ुश्बू हैं
बाग़ों से बह चलें
जैसे काँच में चूड़ी के टुकड़े
जैसे खिले खिले फूलों के मुखड़े
जैसे बंसी कोई बजाए पेड़ों के तले
ये तो झोंके हैं पवन के
हैं ये घुंघरू जीवन के
ये तो सुर हैं चमन के
खो न जाएँ ये तारे ज़मीं पर
मोहल्ले की रौनक गलियाँ हैं जैसे
खिलने की ज़िद पर कलियाँ हैं जैसे
मुठ्ठी में मौसम की जैसे हवाएँ
ये हैं बुज़ुर्गों के दिल की दुआएँ
खो न जाएँ ये तारे ज़मीं पर
कभी बातें जैसे दादी नानी
कभी छलकें जैसे मम-मम पानी
कभी बन जाएँ भोले सवालों की झड़ी
सन्नाटे में हँसी के जैसे
सूने होंठों पे ख़ुशी के जैसे
ये तो नूर है बरसे अगर
तेरी क़िस्मत हो बड़ी
जैसे झील में लहराए चंदा
जैसे भीड़ में अपने का कंधा
जैसे मनमौजी नदिया
झाग उड़ाती कुछ कहे
जैसे बैठे बैठे मीठी सी झपकी
जैसे प्यार की धीमी सी थपकी
जैसे कानों में सरगम
हरदम बजती ही रहे
जैसे बरखा उड़ाती है बुंदिया ...