अब तो नहीं दुनिया में कहीं अपना ठिकाना - The Indic Lyrics Database

अब तो नहीं दुनिया में कहीं अपना ठिकाना

गीतकार - ज़िया सरहदी | गायक - नूरजहां | संगीत - के दत्ता | फ़िल्म - नादान | वर्ष - 1943

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अब तो नहीं दुनिया में कहीं अपना ठिकाना
दुश्मन है ज़माना
अब किस से कहें, कौन सुने अपना फ़साना,
दुश्मन है ज़मानामाना के हर एक तरह से लाचार हुए हैं
सब काम हमारे लिये दुश्वार हुए हैं
लेकिन कभी सदमों से डरे हैं, न डरेंगे
सब सहते रहेंगे
बन जायेंगे तक़दीर के तीरों का निशाना
दुश्मन है ज़माना(आएगा अगर जी में कि रोयें तो हँसेंगे)२
इस तरह जियेंगे
सोयी हुई तक़दीर को आता है जगाना,
दुश्मन है ज़माना